Sunday 27 May 2012

लड़ तुम भी रहे हो! लड़ हम भी रहे हैं!!

लड़ तुम भी रहे हो! लड़ हम भी रहे हैं!! - गिरिजेश 



लड़ तुम भी रहे हो! लड़ हम भी रहे हैं!!
 मगर हमारे अस्त्र-शस्त्र और तौर-तरीके जुदा-जुदा हैं.
 तुम बम बरसाते हो, हम अक्षर बरसाते हैं. तुम गोलियाँ चलाते हो, हम कलम चलाते हैं.
 तुम नफ़रत की आग फैलाते हो, हम प्यार के फूल खिला आहत हृदय को हिम्मत बंधाते हैं. 
 तुम घर-बार, खेत-खलिहान, गाँव-नगर, जंगल-मैदान, स्कूल-अस्पताल, मंदिर-मस्जिद-गुरद्वारे
 - सब के सब जलाते हो,
 हम घर बनाते हैं.

 तुम मृत्यु के निर्मम देवता के बेरहम दूत हो, 
 हम क्रान्ति के बाज और शान्ति के कबूतर उड़ाते हैं.
 तुम इतिहास के रथ-चक्र को जकड़ने की ज़ुर्रत के साथ उसके आगे खड़े हो,
 हम इतिहास के रथ-चक्र को आगे बढ़ाने को अड़े हैं.

 तुम मार डालने के लिये ही जिन्दा हो,

 हम हैं जिजीविषा की सेवा में मर-मिटने पर आमादा.

 तुम मुट्ठी-भर हो और हो हज़ारों-लाखों नौकरों के भरोसे, 
 हम करोड़ो-अरबों हैं, बन्धु हैं, जन हैं,धरती के धन हैं.
 तुम खून बहाते हो, हम पसीना.
 हम अपने सहारे जी लेते हैं, 
 तुम हो जीने के लिये भी हमारा ही सहारा लेने को मजबूर.


तुम धरती से जीवन को ही लील लेना चाहते हो लूट की अपनी अन्धी हविश में,
 हम धरती पर स्वर्ग बनाने को श्रम-रत हैं, आतुर हैं.
 अन्ततोगत्वा हमारी धरती के स्वर्ग पर कब्ज़ा तुम देव-गण का नहीं, हम सभी जन-गण का ही होगा.
 तुम्हारी क्रूर करनी के चलते टपकते हैं मासूम आँखों से खामोश आँसू,
 हम उन आँसुओं से बनाते हैं अंगारे ताकि खाक कर दें तुम्हारी साजिशें.
 मानवता की समूची विरासत है हमारी थाती, 
 क्या इस वज्र के अमोघ प्रहार को सहने को तैयार है तुम्हारी छाती?

 तुम अपने घमण्ड में चूर बारी-बारी से हम सब को करते चले जा रहे हो अपमानित, कलंकित और आरोपित,
 हम अपनी विनम्रता के ज़रिये सम्मान से ऊँचा कर देते हैं अपनी विभूतियों के स्वाभिमानी मस्तक.
 तुम चलवाते हो जहाज, टैंक, तोपें, मशीनगनें, रॉकेट, तारपीडो और तरह-तरह की कारें,
 हम चलाते हैं झाड़ू, गैंते, फावड़े, कुदालें, हल, खुरपियाँ, छेनियाँ, हथौड़े, साइकिलें, बस, जीप,
 ट्रैक्टर, ट्रक और टैंकर.
 हमारे-तुम्हारे बीच का फ़र्क महज़ इतना ही है कि हम चलाते हैं और तुम चलवाते हो.
 तुम्हारा मकसद मन्दी की मार से बचने के लिये अति-उत्पादन को बर्बाद करते जाना है,
 हमारा मकसद जिन्दगी की खिदमत की खातिर उत्पादन, और उत्पादन,
 और और और उत्पादन करते चले जाना है.
 तुम आमादा हो हमारी जिन्दगी को ज़हर बनाने पर,

 मगर हम ही तो हैं अमृत के पुत्र!

 हिंस्र धन-पशु हो तुम, नितान्त बर्बर आदमखोर,
 हुआ है जब से तुम्हारा अवतार हर बार हर जगह हमला ही किया है तुमने,
 और हमने है किया महज प्रतिवाद, प्रतिरोध, प्रतिशोध और प्रतिहिंसा.
 हराया है हर बार हर जगह धरती के हर कोने-अंतरे में हमने तुमको धूल चटायी है.
 इतिहास का हर पन्ना हमारी विजय के गौरव-गीत सुनाता है 
 और बिलखता है तुम्हारी क्रूर, कुटिल, कुत्सित विध्वंसक करनी-करतूत पर.

 कोरिया से वियतनाम तक, हुनान से स्तालिनग्राद तक, गंगा के तट से वोल्गा के किनारे तक,
 वाशिंगटन के किले से पूना की जेल तक, अफगानिस्तान से ईराक तक, क्यूबा से नेपाल तक, 

 फ़्रांस से गाजा-पट्टी तक, मिस्र से लीबिया तक, आकुपाई आन्दोलन से अन्ना आन्दोलन तक 

 याद है हमको खूब-खूब और तुमको भी नहीं ही भूला होना चाहिये कि हर टक्कर में

 जीत हमारी हुई हार तुम्हारी.



 प्रचण्ड है हमारा पथ, शाइनिंग है हमारा पाथ, 

 मगर तुम भी तो मजबूर हो अपनी फितरत से, बर्बाद होने तक लड़ोगे ही.
 महाबली मानव के पतित दुश्मनो! लड़ो, लड़ो, लड़ो! 
 लड़ तुम भी रहे हो! लड़ हम भी रहे हैं!!
 हम लड़ते हैं जीतने के लिये और तुम बर्बाद होने के लिये.

 तीसरे विश्व-युद्ध के कुरुक्षेत्र में 
 श्रम और पूँजी के दोनों ध्रुवों की आमने-सामने खड़ी है अट्ठारह अक्षौहिणी 
 आपादमस्तक शस्त्र-सन्नद्ध वीरगति की मंशा की प्रतिबद्धता से लैस.
 एक ओर है सफ़ेद झण्डा अन्याय का - दुर्योधन का, 
 झण्डे के नीचे खड़े हुंकार रहे हैं बूढ़े भीष्म और द्रोण.
 और दूसरी ओर है महावीरी झण्डा लाल, 
 और लाल झण्डे के नीचे ललकारता है निःशस्त्र सारथी कृष्ण 
 साथ में खड़ा है शहादत या विजय में से एक का प्याला पीने को आकुल अक्षय तरकस के धारदार बाणों से 
 लैस धनुर्धर अर्जुन.

 धर्मयुद्ध हुआ था, हुआ है और हो रहा है अभी भी, 
 मगर अब है वर्गयुद्ध की यह आखिरी जंग.
 इतिहास में पहली बार थोक भाव से चप्पलें खाना शुरू कर चुके हैं तुम्हारे शकुनि और शिखण्डी.
 अब तो तुम्हारा विनाश ही कर देगा पटाक्षेप आदमी का खून पीने वाली व्यवस्था के युद्ध-व्यापार का भी.
 उगता प्रतीत हो रहा है अब तो प्राची का नन्हा लाल गोला
 और हैं थरथराते आतंक के घने काले अन्धकार के आवरण में धरती के गोले को लपेटने वाले ज़ुल्म के 
 आतंकित काले दैत्य.

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