Wednesday 11 July 2012

हमारे सपने, तुम्हारे सपने!


हमारे सपने, तुम्हारे सपने,
अभी ये सपने उगे-उगे हैं;
अगर मिला वक्त भी इन्हें तो,
कभी तो ये भी जवान होंगे.

अभी कदम से कदम मिले हैं,
कभी कदम के निशान होंगे;
जब उन निशानों को देखना तो,
नमी न आँखों में आने पाये.

नहीं मुरव्वत करेगी दुनिया,
हमारे सपनों को मार देगी;
अगर बचाने हैं अपने सपने,
छिपाओ आँसू औ' मुस्कुराओ.

कभी मिले जब मुकाम तुमको,
मुझे न तुम यूँ ही याद करना;
नये तराने उठें लबों से,
नये फसानों को गुनगुनाना....

No comments:

Post a Comment