Friday 2 August 2013

धनतन्त्र की समाज-व्यवस्था - गिरिजेश


विद्रोही अमन - हम जब भी मीडिया कि बात करते हैं या गरियाते हैं तो उसको लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का तमगा भी लगा देते हैं, लेकिन लोकतंत्र के पहले, दूसरे और तीसरे स्तम्भ का नाम आज तक नही सुन पाया किसी भी लेख में, जिज्ञासा है जानने की ये तीन स्तम्भ कौन से हैं?? कृपया पथ प्रदर्शित करें??
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Akshat BaLodi - Karenge.. jald hi

Mohan Shrotriya - विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका। इन तीनों के बारे में खूब लिखा जाता है यहां भी।

विद्रोही अमन - धन्यवाद् सर.

Naresh Semwal - or panchwa istmbh ap h Aman g

Piyush Kumar - Ye chauthe shtambh ka tamga aap jaise vidhroi log lagte hain.....dhyan se dekho....ye teen shtambh humara loktantra hai...jise duniya ka sabse majboot loktantra bnata hai.....Agar aapko ye teen loktantra pta karna hai to plz...dil se ek baar Hindustan ko jaan lo........kyunki vidhroh karne wale to bahut hai...but sawrane wale kum........i will be waiting for ur reply...mr Hindustan vidhroi.... 

Aapka path pardrisht karne ke liye education ke saath development bhi padna padega.....m sry...but its reality for u Mr. Vidhrohi....

Rahul Singh - 9th or 10th me civics......nahi padhe the kya bHai.....agar padhe hote..... Ye question nahi puch rahe hote aaj.....
https://www.facebook.com/aman.badoni
https://www.facebook.com/aman.badoni/posts/960577777320862?ref=notif&notif_t=tagged_with_story
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व्यवस्था - गिरिजेश
प्रिय मित्र, व्यवस्था के बारे में समझ साफ़ न होने से हम अक्सर भ्रम के शिकार बना दिये जाते हैं और इस लुटेरी व्यवस्था को थोडा-बहुत सुधारने की कोशिश को व्यवस्था बदलने की क्रान्तिकारी लड़ाई की कार्यवाही मान बैठते हैं। देश के उच्चतम न्यायलय के गत दिनों नेताओं के चुनाव लड़ने के बारे में आये निर्णयों ने एक बार फिर इस भ्रम को फैलाने में सफलता पायी है।

व्यवस्था क्या है - यह समझने की ज़रूरत है। सत्ता क्या है - इसे जानने की ज़रुरत भी है।
व्यवस्था है किसी भी समाज में चल रहे सम्बन्धों को चलते रहने देना। सत्ता है उन सम्बन्धों के चलते रहने में आने वाली रुकावटों को दूर करने वाला वह डंडा, जिसके दम पर शासक वर्ग आम जन को शोषण, उत्पीड़न और दमन की चक्की के दो पाटों के बीच पीसते समय ज़बरदस्ती कुचलता रहता है।

समाज में दो तरह के लोग एक साथ रहते हैं - अधिकतम कंगाल और मुट्ठी भर मालामाल। उनके रोजी-रोटी, आय-व्यय, रहन-सहन, जनम-मरण, सोच-समझ, आचार-विचार, शिक्षण-प्रशिक्षण - सब के सब एक जैसे स्तर के ही होने के चलते उनको एक वर्ग कहते हैं। एक वर्ग कमेरों का है, तो दूसरा वर्ग लुटेरों का है। लुटेरों के वर्ग का इन्सान के ज़िन्दा रहने के लिए ज़रूरी सारे सामानों का उत्पादन करने वाले सभी साधनों पर आज कब्ज़ा है।

उत्पादन उस प्रक्रिया का नाम है, जिसके ज़रिये इन्सान प्रकृति प्रदत्त सभी उपहारों को अपने उपभोग योग्य स्वरूप में रूपांतरित करने के लिए श्रम करता है। श्रम करने वाले को ज़िन्दा रहने भर को 'मज़दूरी' दे कर समूचे उत्पादन पर अपना कब्ज़ा करके शोषक वर्ग अपना 'मुनाफा' का पहाड़ खडा करता रहता है। इस तरह ये दो तरह के इन्सान बन जाते हैं। एक तरफ मुट्ठी भर मालामाल हैं, तो दूसरी तरफ़ करोड़ों करोड़ कंगाल हैं।

अब आती है सत्ता - इसके तीन मुख्य स्तम्भ हैं - न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका। चौथा स्तम्भ मीडिया को कहते हैं और सत्ता के लिये देश और विदेशों में जासूसी करने वाले विभाग के कर्मियों को 'पंचमांगी' के नाम से जानते हैं। विधायिका परदे के सामने कठपुतली की तरह शासक वर्ग द्वारा चुनाव और सरकार के नाटक में पक्ष-विपक्ष के नाम दे कर लगातार नचाई जाती रहती है, ताकि आम जन के बीच वोट-तन्त्र के सहारे धन-तन्त्र ख़ुद के 'जनतन्त्र' होने का भ्रम बनाये रखे।

असल में तो सारी नीतियों को लागू करने का ही नहीं, उनको बनाने का भी काम कार्यपालिका की आइ.ए.एस. लॉबी करती है।

सत्ता किसी नेता या किसी पार्टी की होती ही नहीं। किसी भी नेता या उसकी पार्टी की तो केवल सरकार ही हो सकती है। सत्ता तो शासक वर्ग की होती है। और आज इस देश ही नहीं समूची दुनिया का शासक वर्ग देशी-विदेशी पूँजी का नापाक गठबन्धन है। केवल हमारे ही देश में ही नहीं, बल्कि आज के इस अति विकसित पूंजीवादी जगत तथाकथित 'वैश्विक गाँव' के किसी भी देश में जिस किसी भी पार्टी की सरकार हो, वह हमेशा ही हर नीति और हर निर्णय धनिक वर्ग के देशी-विदेशी उद्योगों के मालिकों के हित में ही बनाती रहती है।

आइए अब न्यायपालिका की भूमिका को समझने की कोशिश करें। न्यायपालिका मौका पाते ही विधायिका के अलोकप्रिय कुकर्मों के विरुद्ध बार-बार फैसला देती रहती है। परन्तु अगर न्यायपालिका विधायिका के ऊपर अंकुश लगाने का प्रयास करती है, तो विधायिका भी न्यायपालिका को अपनी सीमा में रहने के लिये बार-बार धमकाती रहती है।

न्यायपालिका द्वारा ऐसा फैसला केवल आम जन के दिमाग में इस भ्रम को बनाये रखने और व्यवस्था के चौथे स्तम्भ मीडिया द्वारा प्रचारित कराते रहने के लिये किया जाता है कि न्यायपालिका सत्ता से ऊपर और समाज से भी ऊपर संविधान की तरह एक परम पवित्र, सर्वशक्तिमान और सर्वमान्य शक्ति है। और वह तो निष्पक्ष ही होती है।

इनमें से केवल विधायिका के लोगों का चुनाव होता है. केवल वे ही इलेक्ट किये जाते हैं. ताकि शोषित शासित जन सामान्य को समझाया जा सके कि यह धनतन्त्र वास्तव में जनतन्त्र है क्योंकि उनके पास मतदान करने का अधिकार है. मगर शेष सभी स्तम्भों के लोगों का सिलेक्शन होता है. उनका काम शोषित शासित वर्गों के ऊपर शासक पूँजीपति वर्ग के द्वारा सतत जारी शोषण को बिना किसी व्यवधान के चलाते रहने की व्यवस्था देना और उसे लागू करवाना होता है. किसी भी तरह का व्यवधान आते ही शासक वर्गों की सत्ता की नौकरी करने वाली उनकी पुलिस और सेना विद्रोहियों से सख्ती से निपटती है.

मगर सोचने का मामला तो यह है कि इस लूट-तन्त्र में लूटे जा रहे कंगाल और उसे लूटने वाले मालामाल वर्ग के बीच के परस्पर विरोधी हितों के बीच शासक वर्ग की सत्ता के तरह-तरह के औजारों में से केवल एक औजार के तौर पर बनाया गया और चलाया जा रहा न्याय की अंधी देवी के मन्दिर का यह औजार क्या निष्पक्ष हो सकता है !!!

सोचने में हमारी मदद बर्तोल्त ब्रेख्त की यह कविता कर सकती है - 
"सभी अफसर उनके… "
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यह टिप्पड़ी इस कविता पर है -

"अन्ना ने एक अँधेरे कमरे में दिया जलाया था ,
इस सड़े गले सिस्टम को बदलने के लिए ,
उम्मीद की एक किरण को पैदा किया था ,

आज कमरे में थोड़ी सी रौशनी नज़र आने लगी है ,
उम्मीद थोड़ी जागने लगी है ,

पिछले दिनों कुछ अच्छे फैंसले हुए ,
ये फैंसले संसद ने नहीं किये ,
जिनका ये काम है ,

ये फैंसले देश की अदालतों ने किये ,
जिन पर आम आदमी का विश्वास अभी जिन्दा है ,

पहला फैंसला सरकार सीबीआई को आजाद करे ,
वरना मजबूरन हमे आजाद करना पड़ेगा ,

दूसरा फैंसला लुभाने वाले चुनावी वादों पर अंकुश लगाया जाये ,

तीसरा फैंसला किसी भी अदालत से,
2 साल की सजा पाने वाले नेता की संसद और विधानसभा से छुटी ,

चोथा फैंसला जाती के आधार पर रैलिये करने पर रोक ,

पांचवा फैंसला राजनितिक पार्टी को RTI में लाने की कोशिश ,

धीरे धीरे ही सही ,
परिवर्तन का सूरज निकल रहा है ,

हर उम्मीद टूटने के बाद ,
नयी उम्मीदे जन्म ले रही हैं ,

कुछ लोग कोशिश कर रहे हैं ,
अगर कुछ और लोग कोशिश करे ,
विव्स्था परिवर्तन हो ही जायेगा , जय हिन्द " - Sandeep Garg

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Satya Narayan
बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की ये कविता इस व्‍यवस्‍था की "निष्‍पक्षता" को हमारे सामने खोलकर रख देती है।

वो सब कुछ करने को तैयार
वो सब कुछ करने को तैयार
सभी अफ़सर उनके
जेल और सुधार-घर उनके
सभी दफ़्तर उनके

क़ानूनी किताबें उनकी
कारख़ाने हथियारों के
पादरी प्रोफ़ेसर उनके
जज और जेलर तक उनके
सभी अफ़सर उनके

अख़बार, छापेख़ाने
हमें अपना बनाने के
बहाने चुप कराने के
नेता और गुण्डे तक उनके
सभी अफसर उनके

एक दिन ऐसा आयेगा
पैसा फिर काम न आयेगा
धरा हथियार रह जायेगा
और ये जल्दी ही होगा
ये ढाँचा बदल जायेगा

ये ढाँचा बदल जायेगा
ये ढाँचा बदल जायेगा
बेर्टोल्ट ब्रेष्ट (‘मदर’ नाटक से)


http://www.youtube.com/watch?v=Dt5GJfqCMSI

http://young-azamgarh.blogspot.in/2013/08/blog-post_2.html

— with Girijesh Tiwari.

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